छत्तीसगढ़मस्तूरी

यह बनेंगे लीडर क्या बच्चों को भी बनाएंगे खुद की तरह शराबी ?

शिक्षकों के लिए समय-समय पर इस तरह की कार्य शालाओं का आयोजन किया जाता है लेकिन शिक्षकों के लिए यह कार्यशाला शायद मौज मस्ती और पिकनिक मनाने का अवसर जैसा होता है

ठा. उदय सिंह मल्हार

स्कूल शिक्षा को बेहतर करने कागजों पर सरकारी योजनाओं को अमल में लाया जा रहा है लेकिन धरातल पर उनकी हालत कैसी है वो एक बार फिर मस्तूरी बीआरसी भवन में जारी लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत आयोजित कार्यशाला में नजर आ गई भले ही इस प्रशिक्षण शिविर का मकसद शिक्षकों और प्रधान पाठकों को इस दिशा में प्रशिक्षित करने को लेकर था कि वे किस तरह शिक्षा को बेहतर ढंग से बच्चों तक पहुंचा सके एक टीचर एक लीडर बनकर बच्चों का नेतृत्व करें और उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचाए इसके लिए अप्रशिक्षित शासकीय शिक्षकों के लिए समय-समय पर इस तरह की कार्य शालाओं का आयोजन किया जाता है लेकिन शिक्षकों के लिए यह कार्यशाला शायद मौज मस्ती और पिकनिक मनाने का अवसर है ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि विगत कार्यशालाओ में भी वही नजारे दिखाई पड़े जो अमूमन हर कार्यशाला में नजर आते हैं कार्यशाला की गंभीरता से बेपरवाह कई शिक्षक और प्रधान पाठक यहां शराब के सेवन कर पहुंचे इनमें से राहटा टोर के शासकीय प्राथमिक शाला के प्रधान पाठक रवि शंकर राज ने तो सारी हदें पार कर दी शराब के नशे में धुत्त प्रधान पाठक से खड़ा तक नहीं हुआ जा रहा था इसलिए कार्यशाला के बीच प्रधान पाठक नशे में धुत दरी पर पसर गए बाकियों की हालत इतनी बुरी भले ना रही हो लेकिन प्रशिक्षण शिविर में पहुंचे अधिकांश पुरुष शिक्षक शराब के नशे में पहुंचे थे इनके बीच महिला प्रशिक्षणार्थियों ने पूरे वक्त खुद को असहज महसूस किया और कार्यशाला अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गया इसकी जिम्मेदारी आधिकारिक रूप से मस्तूरी बीईओ सी बी टेकाम की थी लेकिन उन्होंने इसकी गंभीरता को नजर अंदाज किया और औपचारिकता के तौर पर कार्यशाला को निपटाने में ही अपनी समझदारी दिखाई वैसे तो कार्यशाला 2 दिनों का था लेकिन बीईओ साहब ने प्रशिक्षणार्थियों के रहने ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं की थी जिस से नाराज होकर सभी पहले दिन ही लौट गए बीईओ साहब सरकारी पैसों की बचत कर रहे थे या फिर बंदरबांट यह तो वही जाने, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस तरह की प्रशिक्षण कार्यशाला का औचित्य ही क्या है जहां शिक्षक खुद अपने आदर्शों पर खरा नहीं उतर पा रहे क्या नशे में धुत फर्श पर औंधे लेटे ये शिक्षक नेतृत्व प्रदान करने के योग्य है भी ? क्या यह इनमें इतना नैतिक साहस है कि यह बच्चों को अपने आचरण से प्रभावित कर सके। ऐसे शिक्षक अगर लीडर बनेंगे तो फिर जाहिर है बच्चे भी इनसे यही सब सीखेंगे वैसे शायद आपको जानकर हैरानी हो की ग्रामीण स्कूलों में यही सब आम बात हो चुकी है अधिकांश स्कूलों के शिक्षक और शिक्षा कर्मी इसी तरह स्कूलों में शराब पीकर पहुंचते हैं शिक्षण कार्यों से उन्हें कोई लेना देना नहीं स्कूल शराब खोरी का अड्डा बन चुका है शराब की लत इस कदर लग चुकी है कि ऐसे शिक्षक अपने अधिकारियों के समक्ष भी कार्यशाला के दौरान नशे में धुत होकर पहुंच जाते हैं मस्तूरी में आयोजित यह कार्यशाला भी ऐसे ही शराब खोरो की वजह से अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गई लेकिन जब हर कोई दागदार हो तो फिर कौन किस पर उंगली उठाए यही वजह है कि अधिकारी शिकायत के बावजूद लीपापोती करने में जुटे हैं एक तरफ सरकार शराबबंदी को प्राथमिकताओं में गिनती है और दूसरी ओर समाज का वह वर्ग शराब के नशे की गिरफ्त में है जिस पर जिम्मेदारी नई पीढ़ी को गढ़ने का है अगर शिक्षक का रूप है ऐसा होने लगेगा तो फिर आदर्श शिक्षक की छवि इसी तरह धूमिल होगी ऐसे हालात बार-बार शर्मसार ना करें इसलिए शिक्षा विभाग को के लिए जरूरी है कि ऐसे बेलगाम शिक्षकों पर अविलंब लगाम लगाएं

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